जुपिटर का रहस्य
हमारे सौरमंडल का सबसे बड़ा ग्रह जुपिटर का मैग्नेटिक फील्ड बहुत ही बड़ा है। अगर रात के आसमान में हम जुपिटर के मैग्नेटोस्फीयर को देख पाते तो यह लगभग हमारे चांद के आकार के बराबर दिखता। लेकिन यहां सवाल यह था कि आखिर उस गैस की गोली का इतना बड़ा मैग्नेटिक फील्ड कैसे हो सकता था। क्या जुपिटर पूरी तरह खोखला नहीं है।
इस प्रश्न के जवाब के लिए हमें जुपिटर के अंदर जाना था और इसी मिशन के लिए साल 1989 को भेजा गया था। गैलेलियों स्पेसक्राफ्ट को जुपिटर के पास । जुपिटर के बादल देखने में काफी आकर्षक और रंग-बिरंगे है। परंतु इनके रूप से धोखा मत खाना। यह देखने में कितने सुंदर है। असलियत में उतने ही खतरनाक और जानलेवा है।
गैलीलियो स्पेसक्राफ्ट
साल 1995 को गैलीलियो स्पेसक्राफ्ट अपने 6 साल के सफर के बाद हमसे 58 करोड़ 80 लाख किलोमीटर दूर स्थित जुपिटर के ऑर्बिट में दाखिल हुआ। गैलीलियो स्पेसक्राफ्ट मुख्य रूप से दो भागों में बना था।
पहला जुपिटर एटमॉस्फेरिक प्रेशर के अंदर गिराए जाने वाला था और दूसरा भाग जो जुपिटर के बाहर से और आर्बिट करने वाला था, इसमें बहुत सारे सेंसर और एंटीना से लगे थे जिसके जरिए जुपिटर के मैग्नेटिक फील्ड तथा लेटेस्ट ग्रेविटी को करीब से पढ़ना था। 7 दिसंबर 1995 को जुपिटर एटमॉस्फेरिक प्रोप जो कि टाइटेनियम का बना हुआ प्रोप था गैलीलियो स्पेसक्राफ्ट सेट किया गया और यह सीधे जुपिटर के ऐटमोस्फियर में दाखिल हुआ। करीब एक लाख 62 हजार किलोमीटर प्रतिघंटा की स्पीड से जुपिटर का शक्तिशाली गुरुत्वाकर्षण उस प्रोप को तेजी से खींच रही थी, लेकिन हमारे वैज्ञानिक इससे जूझने के लिए पहले से ही तैयार थे। कुछ मिनटों के बाद ही उस प्रोप में लगा पैराशूट खुला और प्रोप की रफ्तार थोड़ा कम हुआ। अब यह जुपिटर के एटमॉस्फेरिक में दाखिल हो चुका था।
जुपिटर का राज
यह सारी जानकारियों को गैलीलियो स्पेस अकाउंट में भेज रहा था और गैलीलियो जहां धरती में बैठे हमारे वैज्ञानिकों को इसके जरिए जुपिटर का राज खुलने वाला था। इस ग्रुप से हमें कई सारी नई जानकारियां मिली। जुपिटर के सबसे ऊपरी एटमॉस्फेयर में दाखिल होने के बाद यह पता चला कि जुपिटर का उपरी एटमॉस्फेयर हमारी पृथ्वी के ऊपर एटमॉस्फेयर जैसा नहीं था बल्कि इसका वायुमंडल घने बादलों से भरा था जो कि बहुत ही अलग आकार के थे।
जुपिटर के बादल
जुपिटर का एटमॉस्फेयर एक घने धुयए के चेंबर जैसा है। यहां के बादल देखने में ही अजीब नहीं है बल्कि यह वाकई में अजीब है। जुपिटर के बादल केवल एक ही सब्सटेंस के नहीं बने हैं बल्कि यह अलग-अलग पदार्थों से मिलकर बने हैं। अमोनिया हाइड्रोजन सल्फाइड और उसी के साथ h2o जी हां, जुपिटर के आसमान में भी पानी के बादल मौजूद है और बेशक इन बादलों से पानी की बरसात भी होती है। परंतु आखिरी यह पानी जाता कहां है क्या जुपिटर के सतह पर पानी की ओसियां से इसका पता हमें और गहराई में जाने पर मिलेगा।
जैसे जैसे हम और गहराई में जाते हैं, वैसे वैसे तापमान में बढ़ोतरी होती है। वातावरण का दबाव अब बहुत ही ज्यादा टेंपरेचर हमारी सहनशक्ति से कहीं ज्यादा लेकिन थोड़े गहराई में जाते ही ऊपरी बादल खत्म हो जाते हैं और फिर आता है साफ खाली आसमान जहां लगातार बारिश होती है और यह दृश्य वाकई में काफी अद्भुत है।
जुपिटर के तूफानी बादल
अगर आप जुपिटर की ऊपरी एटमॉस्फेयर को बाहर से देखोगे तो आपको लगातार चलती हुई तूफानी बादल दिखेंगे। ये ऊपरी बादल अमोनिया से बनी है जो जुपिटर के समानांतर अलग-अलग सोनल बैंड के रूप में लगातार अल्टरनेट डायरेक्शन में बह रही है। इन तूफानी बादलों को जेट कहा जाता है। यह बेंच अल्टरनेट कलर के हैं। गहरे रंग के बेंच को बेस्ट कहा जाता है और हल्के रंग के बेंच को जोन्स कहते हैं तो हम जुपिटर के अंदर थे।
जुपिटर का ऊपरी एटमॉस्फेयर खत्म होने के बाद नीचे आपको केवल जलवाष्प यानी वाटर वेपर मिलेंगे जो लगातार ऊपर की ओर जा रही है। परंतु ऐसा क्यों दरअसल जुपिटर के गहराई में टेंपरेचर और प्रेशर लगातार बढ़ता है। जितनी गहराई उतनी अधिक ही गर्मी यह तापमान इतनी अधिक है कि बारिश की पानी की बूंदे नीचे तक जा ही नहीं पाती या आसमान में ही गर्म होकर भाफ में बदल जाता है। इसलिए जुपिटर के सतह में वॉसईआन्स नहीं हो सकता था।
गैलीलियो का सफर
लेकिन जुपिटर एटमॉस्फेरिक प्रोप ज्यादा गहराई तक नहीं जा पाया। करीब 156 किलोमीटर गहराई तक जाने के बाद भी इसे कोई सॉलिड सर्फेस नहीं मिला और यहां तक पहुंचने के बाद हमारा प्रूफ भी हमारे कंट्रोल से बाहर हो गया।
इसलिए 2011 मे लांच किया गया जोने स्पेस क्राफ्ट जिस मेन मिशन था ज्यूपिटर केमैगनेटिक गैरेवेटिक फील्ड ऐसे और भी कई चीजों का अध्ययन करना
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