हमारा सोलर सिस्टम
दोस्तों मरकरी, वीनस, अर्थ, मार्स, जूपिटर, सैटर्न, यूरेनस एंड नेप्चून प्लेनेट है जो हमारे सोलर सिस्टम में मौजूद है और अर्थ हमारा होम प्लेनेट है। इसके बारे में तो हम जानते हैं लेकिन बाकी ग्रहों के बारे में कम ही जानते हैं। नमस्कार आज हम बात करने वाले हैं। हमारे सोलर सिस्टम के प्लेनेट के बारे में हम जानेंगे कि हमारे सोलर सिस्टम के बाकी प्लेनेट कैसे हैं। उनकी जमीन कैसी हैं। यहां का वातावरण और वायुमंडल कैसा है,वहां पर मिट्टी है, पत्थर है, धातु है या कुछ और है और यह कैसा दिखाई देता है हमारा सूर्य उनकी धरातल से और उनकी कुछ असली तस्वीरें भी हम आपको दिखाएंगे जो स्पेस एजेंसी द्वारा भेजे गए हैं।
बुध ग्रह
सबसे पहले हम बात करते हैं मरकरी यानी कि बुध ग्रह की। बुध ग्रह का अपना कोई एटमॉस्फेयर नहीं है। बुध ग्रह की जमीन समतल नहीं है। जब आप इसे देखते हैं तो आपको ऊबड़ खाबड़ नजर आएगी। यहां कई बड़े-बड़े गड्ढे हैं। गड्ढे कोई ऐसे वैसे गड्ढे नहीं है। एक कई कई किलोमीटर तक लंबे चौड़े और कई किलोमीटर तक गहरे होते हैं। इन गड्ढों के बनने की वजह वैज्ञानिकों के मुताबिक धूमकेतु और छुद्र ग्रह की बुध ग्रह टक्कर से को मानते हैं। वैज्ञानिकों का यह मानना है कि बुध ग्रह की सतह पृथ्वी के चांद की सतह से काफी मिलती जुलती है। बुध ग्रह की सतह पर सबसे बड़ा गड्ढा जो अभी तक वैज्ञानिकों ने खोजा है।
उसका व्यास करीब 15 किलोमीटर का है। बुध ग्रह के वायुमंडल में कोई मौसम ऐसा नहीं पाया जाता। इसलिए यहां तापमान भी धरती के तापमान की तरह नहीं होता है। दिन के समय का तापमान 450 डिग्री सेल्सियस तक पहुंच जाता है। ऐसे में यहां कदम भी नहीं रखा जा सकता। लेकिन अगर हम बात करें रात के समय की तो तापमान -1 से 9 डिग्री सेल्सियस तक गिर जाता है। दोस्तों बुध ग्रह पर वायुमंडल नहीं है जिसकी वजह से यहां तापमान नियंत्रित नहीं रहता और रात होते ही ठंडा हो जाता है और दिन में गर्म होना शुरू हो जाता है। बुध ग्रह पर अभी तक 2 अंतरिक्ष यान भेजे जा चुके हैं। दोस्तों बुध ग्रह सूर्य के सबसे नजदीक वाला ग्रह हैं फिर भी बुध ग्रह हमारे सौरमंडल का सबसे गर्म ग्रह नहीं है
शुक्र ग्रह
तो चलिए अब बात कर लेते हैं। दूसरे ग्रह की जो बुध के बाद सूर्य के सबसे निकट आता है और यह वीनस यानी शुक्र ग्रह हैं और यही वह ग्रह है। इसे सौरमंडल का सबसे गर्म प्लेनेट कहा जाता है। शुक्र ग्रह का वायुमंडल कई किलोमीटर मोटी सल्फ्यूरिक एसिड के बादलों से ढका है और इसके बादलों की वजह से ही शुक्र ग्रह की सतह भी आसानी से दिखाई नहीं देती है। इसके एटमॉस्फेयर में 96% कार्बन डाइऑक्साइड मौजूद है। जिसके कारण ग्रीन हाउस गैस इफेक्ट पैदा करती है और इसी एटमॉस्फेयर की वजह से ही सूर्य की गर्मी वातावरण से बाहर नहीं जा पाते और इसी वजह से यह सबसे गर्म प्लेनेट माना जाता है और इसकी सतह का तापमान 464 डिग्री सेल्सियस तक पहुंच जाता है। शुक्र ग्रह पर कई ज्वालामुखी भी मौजूद हैं।
यहां की सतह चट्टानों और ज्वालामुखी से निकले लावा से मिलकर बनी है। शुक्र ग्रह का 60% हिस्सा ज्वालामुखी के लावे से बना हुआ है। यहां का एकमात्र एयर प्रेशर प्रति ससेकंड 30 ज्यादा है। इसलिए यहां चलना भी हमारे लिए मुश्किल है। यहाँ चलने पर आप को ऐसा महसूस होगा जैसे आप समंदर में कई किलोमीटर नीचे चल रहे हो। इस प्लेनेट के अधिक तापमान की वजह से यहां भेजे गए स्पेसक्राफ्ट भी ज्यादा देर तक यहां काम नहीं कर पाते तो चलिए दोस्तों अब इस सफर को थोड़ा आगे बढ़ाते हैं।
मंगल ग्रह
अब चलते हैं मंगल ग्रह पर यह सूर्य से चौथे नंबर पर आता है। अब आप सोच रहे होंगे कि तीसरे प्लेट का क्या? तो बता दें कि सूर्य के तीसरे नंबर की दूरी पर हमारी पृथ्वी आती है। इसकी सतह के बारे में आप जानते हैं तो हम सीधे मंगल पर आते हैं। इस प्लेनेट की सतह लाल है और इसी वजह से इसे लाल ग्रह भी कहा जाता है। मंगल ग्रह की जमीन से बहुत अधिक मात्रा में आयरन और खनिज पाए जाते हैं और यही आर्यन यहां की सतह का मौजूद धूल और पत्थरों में भी पाया जाता है। आयरन के खनिजों का ऑक्सीकरण होने की वजह से ही यहां की सतह लाल हो गई है जिसे आप जगिया हेमेटाइट के रूप में जान सकते हैं।
मंगल ग्रह पर ठंडा और पतला वायुमंडल होने की वजह से पानी ज्यादा देर तक लिक्विड फॉर्म में नहीं रह पाता। यहां वातावरण काफी ठंडा भी होता है। यहां पर धूल भरी आंधी के बवंडर चलते रहते हैं। सूर्य से दूर होने की वजह से यहां का औसतन तापमान माइनस 55 डिग्री सेल्सियस तक रहता है और अधिकतम तापमान 30 डिग्री सेल्सियस तक हो जाता है, जबकि ठंड में तापमान माइनस 130 डिग्री तक हो सकता है। मंगल ग्रह की सतह कुछ इस तरह की धारियां बनाई हुई नजर आती हैं जिन्हें देखकर ऐसा लगता है, मानो जैसे जल के प्रवाह से बनी है और वह पत्थर के किनारे और रास्ते में आने वाली बाधाओं को तोड़कर आगे बढ़ते हैं। यह धारियां एक छोटे से क्षेत्र में शुरू होती हैं जो फिर कई सैकड़ों मीटर तक दिखाई देती है। दोस्तों अब हम ध्यान से मंगल ग्रह की सतह को देखते हैं तो ऐसा लगता है। यहां पहले से कोई जीवो की जरूरत होगी जिसका किसी कारण से विनाश हो गया होगा। मंगल ग्रह पर जीवन की संभावनाएं हो सकती हैं।
बृहस्पति ग्रह
दोस्त उसके बाद हम बात करते हैं। सूर्य मंडल के सबसे बड़े प्लेनेट की यानि जुपिटर की जिसे बृहस्पति कहा जाता है और यह गैस जॉइंट प्लेनेट हैं जिसका मतलब है। यह गैस से बना हुआ ग्रह है यहाँ कोई जमीन नहीं है यह प्लेनेट गैस और तरल पदार्थों से बना है। यह एक चौथाई हिलियम द्रव्यमान के साथ मुख्य रूप से हाइड्रोजन से बना हुआ है। यहां का वातावरण हाइड्रोजन और हीलियम से बना है जिसमें अमोनिया काफी मात्रा में है यह हजारों किलोमीटर की गहराई तक फैला हुआ है और इसे नजदीक से देखने पर हमें तूफानी बादल की तरह नजर आता है। यह खूबसूरत दिखने वाले बादल असल में बहुत ही खतरनाक और जानलेवा है। यहां का वातावरण घने बादलों से भरा हुआ है। यह दिखने में घने धुएं की तरह दिखाई देता है जो बहुत ही अजीब नजर आता है ज्यूपिटर इतना बड़ा ग्रह है जिसमें तीनों हजारों धरती समा सकती हैं
शनि ग्रह
तो चलिए अब आगे बढ़ते हैं और बात करते हैं। सैर्टन यानि शनि ग्रह की शनि ग्रह की तस्वीर को देखेंगे तो आपको इसके चारों ओर एक रिमाइंडर यानि की रिंग लगी हुई हैं बर्फ के छोटे-छोटे पार्टिकल और चट्टानी टुकड़ों से मिलकर बनी है और यह जमी हुई बर्फ सूर्य से आने वाली किरणों को काफी हद तक रिप्लाई करती है और इसी कारण चमकीली नजर आते हैं। शनि ग्रह का वायुमंडल 96% मौलीकूलर हाइड्रोजन 3% हीलियम से बना है और बाकी का अमोनिया , मिथेन , प्रोपेन से मिलकर बना है। यहाँ का वायुमंडल बहुत ही तेज हवा पैदा करता है जिसकी रफ्तार 2000 किलोमीटर प्रति घंटा होती है। जैसे जैसे हम वायुमंडल में नीचे की ओर जाते हैं। तापमान और मौसम प्रेशर बढ़ता चला जाता है। यहां भी कोई ठोस जमीन नहीं है। यह प्लेनेट पूरा का पूरा गैस से निर्मित है और हम इस ग्रह पर लैंड नहीं कर सकते। हम आपको बता दें कि शनि ग्रह पर अब तक चार मिशन भेजे गए हैं,
अरुण ग्रह
दोस्तों अरुण यानी कि यूरेनस ग्रह हमारे सौरमंडल में सूर्य से सातवां ग्रह है व्यास के आधार पर यह सौरमंडल का तीसरा सबसे बड़ा और द्रव्यमान के आधार पर चौथा सबसे बड़ा ग्रह है। यूरेनस के 27 चंद्रमा हैं। उन सभी का नाम विलियम शेक्सपियर या अलेक्जेंडर पोप के नाम पर रखा गया है। यूरेनस के 5 बड़े चंद्रमा हैं। ये इतने बड़े हैं कि अगर ये यूरेनस की बजाय सूर्य की परिक्रमा कर रहे होते तो इन्हें बौना ग्रह कहा जाता। यह अपनी कक्षा के समतल से लगभग 90 डिग्री के कोण पर घूमता है यह धरती से टू पॉइंट नाइन बिलियन किलोमीटर हैं यह पृथ्वी से चौदह गुना अधिक भारी और आकार में पृथ्वी से चार गुना अधिक बढ़ा है, अरुण ग्रह पर गैस सर्वाधिक मात्रा में मौजूद है। इसलिए इसका घनत्व पृथ्वी से कम है। यानी कि यदि पृथ्वी के आकार का होता तो पृथ्वी से हल्का होता
वरुण ग्रह
दोस्तों सोलर सिस्टम के आठवे ग्रह यानिकी नेपच्यून या फिर कहे वरुण ग्रह के बारे मे कुछ रोचक बाते जानेगें यह पचास हजार किलोमीटर वाला डायमीटर का डार्क ब्लू प्लेनेट हैं हमारे सोलर सिस्टम का लास्ट प्लेनेट है जो सोलर सिस्टम के इकलौते स्टार्स सूर्य से तीस एस्टॉनोमिकल यूनिट की दूरी पर है और एस्टॉनोमिकल यूनिट वो डिस्टेंस है। जितना डिस्टेंस सूर्य से पृथ्वी का हैं यानिकी सूर्य और पृथ्वी के बीच की डिस्टेंस का तीस गुना ज्यादा डिस्टेंस है। यह दूरी इतनी ज्यादा है कि सनलाइट को भी नेपच्यून तक पहुंचने में करीब चार घंटे लग जाते हैं। सोलर सिस्टम के अठवे ग्रह के तुरंत बाद दूसरे बेल्ट की शुरुआत होती है
जो तीस एस्टॉनोमिकल यूनिट से पचास एस्टॉनोमिकल यूनिट तक फैली हुई है। इसके डायामीटर के अनुसार नेपच्यून हमारे सोलर सिस्टम का चौथा सबसे बड़ा प्लेनेट है और अकॉर्डिंग टू गो मास नेपच्यून हमारे सोलर सिस्टम का तीसरा सबसे मसीब प्लेनेट है जिसका मास अर्थ से सत्तरह गुना ज्यादा है। इसका मतलब है बिल्कुल साफ है कि यहां पर धरती से ज्यादा ग्रेविटी भी होगी। वैज्ञानिकों के मुताबिक नेपच्यून की ग्रेविटी अर्थ से एक दसमलव चौदह टाइम ज्यादा है। यानिकी अगर आपका वेट धरती पर सौ किलोग्राम है तो आपके नेपच्यून पर जाने पर आपका वेट एक सौ चौदह किलोग्राम हो जाएगा पर आप नेपच्यून पर खड़े नहीं हो सकते दोस्तों हमारे पेज को फॉलो जरुर करें धन्यवाद
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