Mars Mission || क्यूरोसिटी रोवर की असली कहानी
दोस्तों वर्तमान समय में मंगल ग्रह को इंसानों के दूसरे घर के तौर पर देखा जा रहा है। आज हमारे कई सारे रोवर लैंडर और ऑर्बिटर मिशन मंगलग्रह के सरफेश और उसके ऑर्बिट में मौजूद हैं जो कि लगातार इस ग्रह का अध्ययन कर रहे हैं। ऐसा ही एक मिशन है नासा का क्यूरोसिटी रोवर जो कि पिछले करीब 12 सालों से मंगल ग्रह की सरफेस में मौजूद है और लगातार इस ग्रह की मिट्टी और इसकी जूलॉजी का अध्ययन कर रहा है।
यह रोबोट संभवत मंगल ग्रह पर भेजे गए सबसे पावरफुल और सफल मिशनों में से एक है
जिसने मंगल ग्रह को देखने का हमारा नजरिया हमेशा के लिए बदल कर रख दिया। प्राकृतिक
क्यूरोसिटी रोवर को मंगल ग्रह पर भेजने का मुख्य मकसद क्या था। इसमें कौन से
इंस्ट्रूमेंट मौजूद है और आखिर इस ने पिछले 12 सालों के दौरान मंगल ग्रह पर कौन कौन सी खोजे की। यह सब
जानेगे हम आज के इस वीडियो में तो चलिए शुरू करते हैं।
क्यूरोसिटी रोवर की खर्चा
क्यूरोसिटी रोवर की असली कहानी। 2003 में शुरू हुई थी जब नेशनल रिसर्च काउंसिल ने मार्स साइंस लैबोरेट्री नाम के रोवर प्रोजेक्ट को हरी झंडी दिखाई। शुरुआत में रोवर में लगने वाले 11 साइंटिफिक इंस्ट्रूमेंट्स को सात अलग-अलग देशों द्वारा डिजाइन किया जाना था और इसे 2009 में लॉन्च किए जाने की योजना थी। पर कई सारे डिले की वजह से इस के डिजाइन में कई चेंज किए गए और साथ ही इसका ओवरऑल खर्चा जो कि इस मिशन की शुरुआत में केवल 1.6 बिलियन डॉलर था। वह बढ़कर 3 बिलियन डॉलर हो गया और इसके लॉन्च को भी 2009 से बढ़ाकर 2011 कर दिया गया।
कई और डिले
के बाद आखिरकार इस मिशन को 26 नवंबर 2011 में फ्लोरिडा से लांच कर दिया गया। इसके साथ ही इस मिशन
से मंगल ग्रह की और अपना 567 मिलीयन किलोमीटर का लंबा सफर शुरू किया, जिसमें से आठ महीनों से
ज्यादा का समय लगने वाला था चलिए जब तक कि मिशन मंगल ग्रह की और अपना लंबा सफर तय
करता है। तब तक हम इस मिशन और उसके अध्ययन के बारे में जान लेते हैं
क्यूरोसिटी रोवर उस समय मंगल ग्रह पर भेजे जाने वाला नासा का महत्वकांक्षी और एडवांस मिशन था क्यूरोसिटी एक एसयूवी के आकार का मार्स रोवर है जिसका कुल वजन 900 किलोग्राम के करीब है क्यूरोसिटी ओवर में अब तक के सबसे आधुनिक इंस्ट्रूमेंट मौजूद थे, जिसे आप मंगल ग्रह पर चलती फिरती एक लैबोरेट्री भी कह सकते हैं।
क्यूरोसिटी रोवर के चार मुख्य साइंटिफिक गोल
नासा के अनुसार की क्यूरोसिटी रोवर को मंगल ग्रह पर भेजने के पीछे चार मुख्य साइंटिफिक गोल था। मंगल ग्रह के सरफेश पर कार्बन नाइट्रोजन, हाइड्रोजन जैसी लाइफ की बिल्डिंग ब्लॉक्स की खोज करना और साथ यह पता लगाना कि मंगल ग्रह के इतिहास के दौरान क्या कभी यहां जीवन मौजूद था या नहीं।
इसके साथ ही इसका मकसद मंगल ग्रह की क्लाइमेट
एनवायरमेंट फॉर जियोलॉजी का अध्ययन करना था ताकि इसके द्वारा जुटाई गई जानकारियों
की मदद से भविष्य में प्रस्तावित ह्यूमन एक्सप्लोरेशन मिशंस की तैयारी की जा सके।
अगर मंगल ग्रह पर भेजे गए नासा के अन्य रोवर से इसकी तुलना करें तो यह उनसे कहीं
ज्यादा बढ़ा और एडवांस रोवर था पर इसमें सबसे बड़ा चेंज इसके पावर सोर्स में किया
गया था।
नासा की पुरानी मार्स रोवर से विपरीत इस भारी भरकम रोवर को पावर देने के लिए सोलर पैनल की जगह पहली बार न्यूक्लियर पावर का इस्तेमाल किया गया था। इसमें एक मल्टी मिशन रेडियो आइसोटोप थर्मोइलेक्ट्रिक्स मौजूद है, ऐसे में वापस लौटते हैं हमारे मार्स रोवर के सफर की ओर करीब 8 महीने और 10 दिनों की लंबी यात्रा के बाद आखिरकार 6 अगस्त 2012 में इस रोवर ने मंगल के क्रियटेर नामक जगह पर अपनी सॉफ्ट लैंडिंग की शुरुआत की।
मंगल ग्रह पर रोवर को उतारना
पहले नासा मंगल ग्रह पर
अपने रोवर को उतारने के लिए रोलिंग मेथड का उपयोग करता था, जिसके अंतर्गत मुख्य दो
बार बलून बैंक से भरे हुए एक कंटेनर में मौजूद रहता था जो कि लैंडिंग के दौरान
मंगल ग्रह के सर्विस पर रोल होता था और मुख्य रोवर को किसी भी तरह के डैमेज से
बचाता था और फिर मंगल ग्रह पर रोल जाने के बाद बलून से हवा निकल जाती थी और मुख्य
रोवर इस कंटेनर से बाहर आ जाता था। पर क्यूरोसिटी रोवर एक बेहद भारी भरकम रोवर था
और मंगल ग्रह की लैंडिंग के लिए इस मेथड का उपयोग करना बेहद ही खतरनाक था। ऐसे में
की क्यूरोसिटी रोवर को मंगल ग्रह पर निगरानी के लिए नासा के वैज्ञानिकों ने एक नए
सीक्वेंस को चुना।
सबसे पहले मंगल ग्रह के पास घर में दाखिल होने के बाद यह
स्पेसक्राफ्ट एक सुपर सोनिक पैराशूट को डिपलोई करता है जो कि इस स्पेसक्राफ्ट की
स्पीड को कम करने का काम करता है। यह हाइपरसोनिक पैराशूट इस स्पेसक्राफ्ट की स्पीड
को 322 किलोमीटर प्रति घंटा तक कम
तो कर देता है। पर अभी भी यह स्पीड लैंडिंग के लिए बेहद ही ज्यादा होती है। ऐसे
में वैज्ञानिकों ने इसे फाइनल लैंडिंग के लिए स्पेसक्राफ्ट में खास तरह के रॉकेट
को डिजाइन किया जो कि फाइनल स्टेज में इस स्पेसक्राफ्ट की स्पीड को कम करने का काम
करेंगे ताकि मंगल ग्रह पर सॉफ्ट लैंडिंग कर सके। इसमें से करीब 18 मीटर ऊपर इस स्पेसक्राफ्ट
में मौजूद विशेष इंस्ट्रूमेंट जिसे स्ट्राइक में नाम दिया गया है, वह अपना काम शुरू करेगा।
यह मुख्य रोवर को 6 मीटर लंबे तेथर केबल की मदद से मंगल ग्रह की सरफेस में उतरेगा और इस स्पेस क्राफ्ट में मौजूद लैंडिंग मुख्य रूप से अलग होकर कुछ दूरी पर जाकर करैस हो जाएगा। 7 मिनट तक चलने वाले इस लैंडिंग सीक्वेंस को बेहद कॉम्प्लिकेटेड नेचर की वजह से वैज्ञानिकों द्वारा 7 मिनट टेरेर नाम दिया गया है।
क्यूरोसिटी रोवर में बेस्ट कैमरा एंड लेंस
क्यूरोसिटी रोवर स्टूमेंट टेक्नोलॉजी एडवांस में मौजूद है।मंगल ग्रह के चिरोलॉजी लैंडस्केप फॉर मेन रोड का करीबी से अध्ययन करने और उनकी तस्वीरें लेने के लिए इसमें बेस्ट कैमरा एंड लेंस इमेज के तीन कैमरे मौजूद है। रोवर आज भी मंगल ग्रह पर अपना काम बखूबी कर रहा हैं इसने हमे मार्स के बारे मे बहुत कुछ जंकारिया दी मार्स हमारे लिए धरती के बाद जीवन के लिए सबसे महत्तवपूर्ण ग्रह मार्स हैं हमारे कई मिशन जो की भविष्य मे जाने वाले हैं जिसमे मानव मिशन भी शामिल है
मंगल ग्रह की सतह पर एक अंतरिक्ष यान की लैंडिंग को मार्स लैंडिंग कहते हैं. रोबोटिक अंतरिक्ष यान ने कई बार मंगल पर उतरने की कोशिशें की, जिसमें से दस मार्स लैंडर ने सफल सॉफ्ट लैंडिंग की है वैसे अब तक मंगल को जानने के लिये शुरू किये गये दो तिहाई अभियान असफल भी रहे हैं परन्तु 24 सितंबर 2014 को मंगल पर पहुँचने के साथ ही भारत विश्व में अपने प्रथम प्रयास में ही सफल होने वाला पहला देश तथा सोवियत रूस, नासा और यूरोपीय अंतरिक्ष एजेंसी के बाद दुनिया का चौथा देश बन गया है।
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