नेपच्यून ग्रह
दोस्तों आज हम सोलर सिस्टम के आठवे ग्रह यानिकी नेपच्यून या फिर कहे वरुण ग्रह के बारे मे कुछ रोचक बाते जानेगें यह पचास हजार किलोमीटर वाला डायमीटर का डार्क ब्लू प्लेनेट हैं हमारे सोलर सिस्टम का लास्ट प्लेनेट है जो सोलर सिस्टम के इकलौते स्टार्स सूर्य से तीस एस्टॉनोमिकल यूनिट की दूरी पर है और एस्टॉनोमिकल यूनिट वो डिस्टेंस है। जितना डिस्टेंस सूर्य से पृथ्वी का हैं यानिकी सूर्य और पृथ्वी के बीच की डिस्टेंस का तीस गुना ज्यादा डिस्टेंस है। यह दूरी इतनी ज्यादा है कि सनलाइट को भी नेपच्यून तक पहुंचने में करीब चार घंटे लग जाते हैं।
सोलर सिस्टम के अठवे ग्रह के तुरंत बाद दूसरे बेल्ट की शुरुआत होती है जो तीस एस्टॉनोमिकल यूनिट से पचास एस्टॉनोमिकल यूनिट तक फैली हुई है। इसके डायामीटर के अनुसार नेपच्यून हमारे सोलर सिस्टम का चौथा सबसे बड़ा प्लेनेट है और अकॉर्डिंग टू गो मास नेपच्यून हमारे सोलर सिस्टम का तीसरा सबसे मसीब प्लेनेट है
अर्थ से सत्तरह गुना मास
जिसका मास अर्थ से सत्तरह गुना ज्यादा है। इसका मतलब है बिल्कुल साफ है कि यहां पर धरती से ज्यादा ग्रेविटी भी होगी। वैज्ञानिकों के मुताबिक नेपच्यून की ग्रेविटी अर्थ से एक दसमलव चौदह टाइम ज्यादा है। यानिकी अगर आपका वेट धरती पर सौ किलोग्राम है तो आपके नेपच्यून पर जाने पर आपका वेट एक सौ चौदह किलोग्राम हो जाएगा पर आप नेपच्यून पर खड़े नहीं हो सकते
यानिकी आप नेपच्यून पर गए तो खड़े कहां होगे क्योंकि इसके पास कोई सॉलि़ड सर्फेस तो है नहीं बल्कि यहाँ तो पूरी तरह आईसी मटेरियल, वाटर, मीथेन एंड अमोनिया जैसी चीजों से मिलकर बना है, जिसके लिक्विड सर्फेस पर एक बार उतरने के बाद तो आप लगातार इस में डूबते ही चले जाएंगे जब तक कि आप इसमें इतनी गहराई में ना चले जाएं, जहां पर इंटेंस प्रेशर और हिट आपकी जान न ले ले दोस्तों अब हम इस सफर मे और आगे चलते हैं
नेप्चून की मिस्टीरियस दुनिया के सफर पर
हमारे सोलर सिस्टम के आखरी जॉइंट प्लैनेट नेप्चून की मिस्टीरियस दुनिया के सफर पर चल रहे हैं तो अपनी सीट बेल्ट बांध लीजिए डिस्कवरी उन्नीसवी शताब्दी तक नेपच्यून को डिस्कवर नहीं किया गया था। इसका बहुत बड़ा रीजन था कि हम अपनी साधारण आंखों से इसे देखी नहीं सकते थे बल्कि सोलह सौ बारह में गैलीलियो द्वारा नेप्चून का पहली बार ऑब्जरवेशन रिकॉर्ड किया गया था,
लेकिन उस समय रिसर्च ने उसकी चमक को देखकर उसे एक स्टार समझने की गलती कर दी। इसके बाद सत्तरह सौ ईस्वी तक एस्ट्रोनामर ने हमारे सोलर सिस्टम के सातवे प्लैनेट यूरेनस को नोटिस किया और यूरेनस ने अपनी परेडएक्टिव ऑर्बिट को फॉलो नहीं कर रहा था, इसका साफ-साफ मतलब यह था इसके पास कोई ना कोई तो है जो है बिल्कुल मिस्टीरियस है यूरेनस जैसे जॉइन्ट प्लेनेट के ऑर्बिट को भी डिस्टर्ब कर रहा है जब उन्होंने देखा कि यूरेनस के ऑर्बिट में कोई रेगुलरटी हो रही है। तो उसके बाद फ्रैंच मैथमेटिशियंस आर्बे बैरियर ने 1845 में उस आठवे प्लेनेट की पोजीशन की कैलकुलेशन की जो यूरेनस के ऑर्बिट में इंटरफ्रेंस कर रहा था।
1846 में जोहान गैलन
उसके बाद उन्होंने इस आठवे प्लेनेट की प्रेडिक्शन को वर्ली ऑफ ऑबजेरवेटिव में भेजा। इसके बाद बर्लिन ऑब्जर्वेटरी के सभी एस्ट्रोनंबर्स ने इनकी कैलकुलेशन को ध्यान से चेक किया और फिर तेईस सितंबर 1846 में जोहान गैलन ने उस कैलकुलेशन की हेल्प से हमारे सोलर सिस्टम के आठवे प्लेनेट यानिकी नेपच्यून को ऑब्जर्वर किया। उस समय नेपच्यून हमारे सोलर सिस्टम का सबसे पहला प्लेनेट था, जिसे मथमेटिकाल परएडेक्सन के जरिए खोजा गया था दोस्तों ये जानकारी कैसा लगा आप कमेन्ट करके बताए कंटेन्ट को लाइक पेज को सपोर्ट जरूर करे
0 टिप्पणियाँ